2009 में ओम प्रकाश चौटाला ने क्यों लड़ा उचाना से बीरेंद्र सिंह के खिलाफ चुनाव!

धर्मपाल वर्मा
चण्डीगढ़।
किसी ने सही कहा है कि राजनीति में कोई किसी का न स्थाई दुश्मन होता है न स्थाई दोस्त । देखा जाए तो ‘स्यूत- कसूत’ का नाम ही राजनीति है। मतलब राजनीति मौके के अनुरूप फैसले लेने का ही नाम है । हरियाणा के दिग्गज नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह ऐसे व्यक्ति हैं जो अपने स्वभाव से समझौता नहीं करते। कई बार राजनीतिक नुकसान भी उठा चुके हैं ।लोग उन्हें इसलिए ट्रेजेडी किंग का भी कह देते हैं कि दावेदार उम्मीदवार और योग्य होते हुए भी वह मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। यह अलग बात है कि वह प्रदेश में और केंद्र में मंत्री रहे, हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे ,अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव रहे। चौधरी बीरेंद्र सिंह दीनबंधु सर छोटू राम के नाती हैं परंतु उन्होंने कभी छोटू राम का नाती बता कर राजनीति नहीं की ।
पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला।
हरियाणा में एक बात आमतौर पर चलती है कि राज्य में जो वित्त मंत्री होता है वह विधानसभा का अगला चुनाव नहीं जीत पाता। ऐसा चौधरी वीरेंद्र सिंह के साथ भी हुआ। 2005 में वह भूपेंद्र सिंह हुड्डा मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री थे फिर 2009 में विधानसभा का चुनाव हार गए ।यह अलग बात है कि पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेज कर सांसद बना दिया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री कांग्रेस नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह।
अब आपको चौधरी बीरेंद्र सिंह का राजनीति के उतार चढ़ाव से जुड़ा एक किस्सा बताते हैं। चौधरी बीरेंद्र सिंह जब वित्त मंत्री थे तो 2009 के लोकसभा के चुनाव आ गए। चौधरी वीरेंद्र सिंह 1984 में हिसार से सांसद भी रह चुके थे उन्होंने हिसार से ओमप्रकाश चौटाला को हराकर यह जीत दर्ज की थी। शायद यही कारण था कि उन्होंने 2009 में सोनीपत से लोकसभा का चुनाव लड़ने की योजना बना ली। उस समय सोनीपत में कांग्रेस का सीटिंग एमपी नहीं था।
लेकिन ऐसा समझा जाता है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा शायद नहीं चाहते थे कि बीरेंद्र सिंह लोकसभा का चुनाव लड़े और वह भी सोनीपत से। बताते हैं कि चौधरी बीरेंद्र सिंह ने टिकट के लिए दिल्ली में खूब लॉबिंग की परंतु भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उनके पैर नहीं लगने दिए और वह मलिक खाप तथा स्थानीय उम्मीदवार का नाम लेकर जितेंद्र मलिक को टिकट दिलवाने में कामयाब हो गए। जितेंद्र मलिक चुनाव भी जीत गए।
कांग्रेस ने उस चुनाव में भिवानी से किरण चौधरी की पुत्री श्रुति चौधरी को टिकट दी थी। यह भी की उस चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल के उम्मीदवार थे अजय सिंह चौटाला। चौधरी बीरेंद्र सिंह की किरण चौधरी से अच्छी अंडरस्टैंडिंग थी और सोनीपत से टिकट का फैसला हो ही चुका था इसलिए चौधरी बीरेंद्र सिंह श्रुति चौधरी के पक्ष में प्रचार करने भिवानी पहुंच गए और उन्होंने मंच से यह ऐलान कर दिया कि हरियाणा की अगली राजनीति में किरण चौधरी और वह अपना लट्ठ गाड कर दिखाने वाले हैं। संदेश यह था कि लोग श्रुति चौधरी को विजयी बनाएं और वह और किरण चौधरी मिलकर हरियाणा में राजनीतिक करें। जब चौधरी बीरेंद्र सिंह श्रुति चौधरी के लिए समर्पित और आक्रामक भाव से चुनाव प्रचार करते नजर आए तो ओमप्रकाश चौटाला को यह बात अच्छी नहीं लगी।
बताते हैं कि चौटाला ने किसी न किसी तरह से चौधरी वीरेंद्र सिंह को यह बात समझने की कोशिश की कि वे इस चुनाव में अनावश्यक हस्तक्षेप ना करें और वापस लौट जाए। ओम प्रकाश चौटाला ने चौधरी वीरेंद्र सिंह को यह समझने की कोशिश की कि यहां उनका अपना बेटा चुनाव लड़ रहा है और वह चाहते हैं कि बीरेंद्र सिंह यहां से लौट जाए। उनकी यहां आकर चुनाव प्रचार करने की कोई विवशता नहीं है। ओम प्रकाश चौटाला चाहते थे कि चौधरी वीरेंद्र सिंह चुनाव प्रचार छोड़कर चले जाएं परंतु चौधरी वीरेंद्र सिंह पहले की तरह काम करते रहे।
बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री चौटाला ने इसे राजनीतिक न्यौते के रूप में देखा और इसका जवाब देने का मन बना लिया।
जब 2009 के विधानसभा के चुनाव हुए तो ओमप्रकाश चौटाला ने चौधरी बीरेंद्र सिंह के खिलाफ उचाना से ही नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। इससे पहले श्री चौटाला नरवाना से चुनाव लड़ते थे और नरवाना हल्का रिजर्व हो गया था। लेकिन चौटाला के पास ऐलनाबाद रानियां,डबवाली आदि कई ऐसे हल्के थे जहां से वह चुनाव लड़ सकते थे। इस चुनाव में कांग्रेस के बहुत से नेताओं सहित बीरेंद्र सिंह के सारे विरोधी एकजुट हो गए और चौधरी बीरेंद्र सिंह उचाना से चुनाव हार गए। उस उचाना से जहां से वह 1977 में भी जीत गए थे।
चौधरी बीरेंद्र सिंह बाद में राज्यसभा सदस्य चुन लिए गए। परंतु उसके बाद 2014 में उनकी पत्नी प्रेमलता को उचाना से विधायक बनने का मौका मिला परंतु 2024 के चुनाव में चौधरी बीरेंद्र सिंह के पुत्र बृजेंद्र सिंह के खिलाफ भी साजिश हुई और वह भी चुनाव हार गए अभी उनकी इस चुनाव से संबंधित एक याचिका पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में विचाराधीन है।
अब संबंधों की बात करते हैं। जिस ओमप्रकाश चौटाला ने 2009 के चुनाव में चौधरी वीरेंद्र सिंह को हराया शायद उन्हें ही इस बात का एहसास हो गया कि चौधरी बीरेंद्र सिंह बढ़िया इंसान हैं। इन दोनों में कुछ ही दिन बाद बहुत बढ़िया अंडरस्टैंडिंग दिखाई देने लगी।
चौधरी बीरेंद्र सिंह अलग पार्टी में थे लेकिन ओम प्रकाश चौटाला की अपेक्षाओं और व्यक्तिगत संबंधों को देखते हुए जींद में आयोजित स्वर्गीय चौधरी देवीलाल के जन्मदिन पर आयोजित सम्मान दिवस समारोह में पहुंच गए थे। जब ओमप्रकाश चौटाला जेल से बाहर आए तो गुरुग्राम में उनसे उनके घर जाकर सबसे पहले मिलने वाले नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह थे।
आज बेशक ओमप्रकाश चौटाला हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी अभय सिंह चौटाला भी एक तरह से चौधरी बीरेंद्र सिंह के परिवार के शुभचिंतक की तरह देखे जा रहे हैं। यही कारण है कि वह मंच पर खड़े होकर बताते से नहीं चूकते कि बृजेंद्र सिंह को किसने और क्यों हराया।
बृजेंद्र सिंह 5 अक्टूबर से एक यात्रा शुरू करने जा रहे हैं इस यात्रा को लेकर लोगों ने यह समझ लिया है कि बेशक कांग्रेस के कुछ लोग इस यात्रा से दूरी भी बना लेंगे लेकिन बृजेंद्र सिंह को उन लोगों की भी सहानुभूति मिल सकती है जो कहीं ना कहीं पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की बात करते हैं या फिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के विरोधी हैं। यह यात्रा बृजेंद्र सिंह की अधिकारी की छवि को पॉलीटिशियन में बदलने का काम कर सकती है।
अब चौधरी बीरेंद्र सिंह को यह अनुमान लगाने का अवसर मिलेगा कि असल में अब जब उनके घर वापसी हो चुकी है तो उनके साथ कौन-कौन हैं और बृजेंद्र सिंह को किन-किन लोगों पर भरोसा करके चलना चाहिए।
सेवानिवृत आईएएस पूर्व सांसद चौधरी बीरेंद्र सिंह के पुत्र कांग्रेस नेता बृजेंद्र सिंह।
बृजेंद्र सिंह को भी अब जान लेना होगा कि,
गैर परो से उड़ सकते हैं हद से हद दीवारों तक।
आसमान में वही उड़ेंगे जिनके अपने पर होंगे।