तराई में सर्पदंश का साया: जंगलों से घरों तक पहुँच रहा खामोश कातिल”

तराई में सर्पदंश का साया: जंगलों से घरों तक पहुँच रहा खामोश कातिल
Tribute meeting and public service program organized by Late Umesh Aggarwal Foundation
बाघ-गुलदार नहीं, तराई में ‘सांप’ बन रहे इंसानी मौत का बड़ा कारण! जंगल के भीतर छिपा खामोश खतरा।
रामनगर जिला नैनीताल
इंसान और वन्यजीवों के बीच टकराव अब सिर्फ बाघ और गुलदार तक सीमित नहीं है.कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व और उसके आसपास के इलाकों में तो ये टकराव कई सालों से सुर्खियों में रहा है,लेकिन अब एक और खामोश पर ख़तरनाक दुश्मन सामने आ रहा है – सांप।
जी हाँ, जहां एक ओर बाघों और गुलदारों की मौजूदगी लोगों के लिए खतरा बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर तराई के जंगलों में अब सांप इंसानी ज़िंदगियों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं. समस्या ये है कि इस टकराव को न तो मीडिया की बड़ी सुर्खियाँ मिलती हैं और न ही ज़रूरी सरकारी प्राथमिकता.
कॉर्बेट क्षेत्र के आसपास बसे गाँव और कस्बे अक्सर बाघ या गुलदार की खबरों से दहशत में रहते हैं, लेकिन इस दहशत के बीच एक और जानलेवा संघर्ष लगातार चल रहा है, जो न शोर करता है और न ही आने की आहट देता है – और वो है सांप का डसना.
हर साल, खासकर मानसून के दौरान और उसके बाद, तराई के जंगलों से निकलकर ये ज़हरीले जीव खेतों, झाड़ियों और यहां तक कि घरों तक पहुँच जाते हैं,इससे जानवरों के साथ-साथ इंसानों की जान भी खतरे में पड़ जाती है.
रामनगर वन प्रभाग (2020 से अब तक):
कुल सर्पदंश के मामले: 25
मौतें: 1
घायल: 24
कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व (2021 से अब तक):
कुल सर्पदंश: 24
मौतें: 2
घायल: 22
तराई पश्चिमी वन प्रभाग (2020 से अब तक):
कुल मामले: 60
मौतें: 13
घायल: 47
इन आंकड़ों से साफ होता है कि तराई पश्चिमी वन प्रभाग में सांप के काटने से मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है, जो इलाके में चिंता का बड़ा कारण है.
मामले में WWF के कॉर्डिनेटर मीराज अनवर कहते है तराई बेल्ट में इंसान और साँप के बीच टकराव काफी बढ़ गया है,अक्सर लोग डर के कारण सांप को मारने की कोशिश करते हैं, जिससे हादसे बढ़ जाते हैं,ज़रूरत है कि सही जागरूकता फैलाई जाए और त्वरित इलाज की व्यवस्था की जाए.
ग्रामीण क्षेत्रों में सांपों की मौजूदगी अब आम होती जा रही है,खेतों में काम कर रहे किसान, लकड़ी बीनने वाली महिलाएँ या छोटे बच्चे अक्सर इस चपेट में आ जाते हैं.
लेकिन सबसे बड़ी चुनौती ये है कि सर्पदंश के इलाज के लिए एंटी वेनम हर जगह उपलब्ध नहीं होता, और न ही हर व्यक्ति को इस आपात स्थिति में सही समय पर अस्पताल पहुंचाया जा पाता है.
यही कारण है कि कई बार एक साधारण डसना भी मौत की वजह बन जाता है.
वहीं मामले में तराई पश्चिमी वन प्रभाग डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्या ने बताया कि हम लगातार इस दिशा में काम कर रहे हैं, कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को सर्पदंश से बचाव और प्राथमिक उपचार की जानकारी दी जाए,गांवों में एंटी वेनम का स्टॉक रखा जाए और लोगों को सांपों को मारे बिना पकड़ने की ट्रेनिंग दी जाए.
तराई के जंगलों में इंसान के लिए अब सिर्फ बाघ और गुलदार ही नहीं, सांप भी एक बड़ा और बढ़ता हुआ ख़तरा बन चुके हैं.
ये खतरा चुपचाप आता है, और कई बार जान लेकर चला जाता है।
ज़रूरत है कि सांपों को लेकर सिर्फ डर नहीं, सही समझ विकसित की जाए,जागरूकता बढ़ाई जाए,गाँव-गाँव में प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराई जाए,और एंटी वेनम की आसान उपलब्धता सुनिश्चित की जाए
क्योंकि जब तक हम इस खामोश खतरे को समझेंगे नहीं, तब तक ये टकराव और ज़्यादा जानलेवा होता जाएगा.
कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व से लगे तराई क्षेत्र में बाघ और गुलदार से ज़्यादा मौतें सांप के काटने से होती हैं — ये कहना है ‘सेव द स्नेक’ समिति के अध्यक्ष सर्फ विशेषज्ञ चंद्रसेन कश्यप का, जिन्होंने अब तक 55,000 से अधिक सांपों का रेस्क्यू किया है,उनका कहना है कि गर्मी और मानसून के मौसम में सांप ज़्यादा बाहर निकलते हैं, जिससे काटने की घटनाएं बढ़ जाती हैं,चंद्रसेन कश्यप लोगों से अपील करते हैं कि घर के आसपास साफ़-सफ़ाई रखें, फिनाइल या कीटनाशक का प्रयोग करें, और विशेष सतर्कता बरतें, वह कहते हैं कि सांप को ना मारे और सांप के दिखाने पर तुरंत वन विभाग या समिति से संपर्क करें,सांपों से डरें नहीं, बल्कि समझदारी से निपटें।