अब हरियाणा की राजनीति में शुरू होगा शह मात का खेल!

साभार।
धर्मपाल वर्मा
चण्डीगढ़।
कांग्रेस ने हरियाणा में पार्टी के पुनर्गठन का एक महत्वपूर्ण काम पूरा कर लिया है परंतु उसे अब सतारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और प्रदेश के शेष विपक्ष खासतौर पर इंडियन नेशनल लोकदल से कदम कदम पर दो-दो हाथ करने को तैयार रहना होगा और कांग्रेस यह काम बिना एकजुट हुए कर पाएगी, लगता नहीं । हरियाणा में कई बार यह देखा गया है कि कई नेता और कई दल कहने को तो विरोध में होते हैं लेकिन अंदर खाने अद्भुत तरीके से आपस में तालमेल बना लेते हैं। एक दूसरे के इंटरेस्ट वाच करके चलते हैं ।आपस में मिल जाते हैं।
हरियाणा के लोगों को याद है कि एक समय ऐसा था जब यह आरोप लगते थे कि हरियाणा के दो नेता दोनों पूर्व मुख्यमंत्री एक दूसरे से मिलकर राजनीति करते हैं । दिखावा कुछ और होता है हकीकत कुछ और होती है। इन परिस्थितियों का कटु अनुभव हरियाणा के कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला को उस समय हुआ था जब उन्होंने नरवाना से अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ा था। इन्हीं परिस्थितियों के कारण 2004 में कुमारी शैलजा को अपने गृह लोकसभा क्षेत्र सिरसा को छोड़कर अंबाला जा कर चुनाव लड़ना पड़ा था।
लेकिन एक सच्चाई और है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा इसी मुद्दे की नाव पर सवार होकर सत्ता के किनारे तक पहुंच गए थे। उन्होंने चुनाव के समय इन दोनों नेताओं के इस अंदरूनी तालमेल को एक्सपोज करने की कारगर कोशिश की।
कुछ ऐसी ही स्थिति अब है। कुछ कहते हैं कि भाजपा और भूपेंद्र हुड्डा मिले हुए हैं कुछ कहते हैं कि भाजपा और इनेलो एक दूसरे के पूरक हैं मतलब इनेलो के नेता अभय सिंह चौटाला भाजपा से मिले हुए हैं कुछ कहते हैं कि यह तीनों ही मिले हुए हैं और कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के षड्यंत्र में शामिल हैं। इंडियन नेशनल लोकदल के नेता अभय सिंह चौटाला कांग्रेस के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर भाजपा से मिले होने का आरोप लगाते हैं और अब तो यहां तक कहते हैं कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ही हरियाणा में भाजपा की सरकार बनवाई है। इस बारे में तरह-तरह के प्रमाण दे कर अपनी बात को सही साबित करने की कोशिश की जाती है।
उधर भूपेंद्र सिंह हुड्डा जोर देकर यह बात कहते हैं कि जेजेपी और इनेलो ही नहीं चौधरी देवीलाल का लगभग सारा ही परिवार भारतीय जनता पार्टी के साथ तालमेल बनाकर काम करता है। यह प्रोक्सी है। भाजपा की हरियाणा की पिछली सरकार का सबसे ज्यादा फायदा इसी परिवार ने उठाया है।
अब हरियाणा में कांग्रेस ने जैसे ही नए प्रदेश अध्यक्ष के साथ विधायक दल के नेता के नाम की घोषणा की, इंडियन नेशनल लोकदल इन दोनों के खिलाफ आक्रामक तरीके से विरोध में आ खड़ा हुआ है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामपाल माजरा ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह की वह सीडी फिर से जारी कर दी है जिसे सत्ता में रहते भ्रष्टाचार के एक प्रमाण के रूप में दर्शाया जा रहा है। यह अलग बात है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने इसे खारिज किया हैं और इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं वे कानूनी तर्क भी दे रहे हैं।
यहां अब हरियाणा की राजनीति में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक मोड़ आ रहा है जिसका लाभ निश्चित तौर पर सत्ता में बैठे भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को होता दिख रहा है।
भाजपा के नेताओं को इस बात का पता है कि अब इंडियन नेशनल लोकदल का पहला लक्ष्य कांग्रेस होगा और इंडियन नेशनल लोकदल और कांग्रेस लड़ेंगे तो भाजपा को उसका घर बैठे लाभ मिलेगा। जहां तक शह देने की बात है, भाजपा के नेता इस मामले में इंडियन नेशनल लोकदल को अंदरखाने समर्थन देकर राजनीति करने से बाज नहीं आएंगे।
यह स्वाभाविक है कि दो पक्षों की लड़ाई में लाभ तीसरे को मिल ही जाता है।
भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से राजनीति की है। उसके बहुत नेता हर हालात को इवेंट बनाने का हुनर जानते हैं।
विशेषज्ञ जानते हैं कि 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में यह दर्शा कर सत्ता हासिल की कि भारतीय जनता पार्टी निश्चित तौर पर किसी जाट को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी। जबकि इनेलो सत्ता में आई तो ओमप्रकाश चौटाला के रूप में जाट मुख्यमंत्री बनेगा और कांग्रेस का सप्पा लगा तो उसका मुख्यमंत्री भी(भूपेंद्र हुड्डा) जाट ही होगा। देखा जाए तो हरियाणा की जनता के एक बड़े हिस्से को भाजपा ने साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट देने में सफलता हासिल की।
विधानसभा के चुनाव के प्रचार के आखिरी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुग्राम की चुनावी सभा में जब स्पष्ट तौर पर यह कहा कि जेल में बैठे नेताओं से हम कोई गठबंधन या ताल मेल नहीं करेंगे तो एक ही रात में पासा पलट गया और इस चुनाव को भी भारतीय जनता पार्टी ने इवेंट बना दिया। भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने उसे समय यह साबित किया कि राजनीति भी एक खेल है और उसे वह कई बार शतरंज के खेल की तरह खेलते हैं।
उस समय हरियाणा में यह आम मान्यता बनी हुई थी कि इनेलो और भाजपा मिलकर सरकार बनाएंगे। लेकिन भारतीय जनता पार्टी को हरियाणा की जनता ने ऐसा जनादेश दे दिया कि उसे किसी सिंगल निर्दलीय विधायक के समर्थन की भी जरूरत नहीं पड़ी ।
उसके 47 विधायक जीतकर आए। भाजपा को केंद्र में सरकार बनने का लाभ हरियाणा में इसलिए हुआ कि हरियाणा के लोग अमूमन ऐसी स्थिति में केंद्र में सत्तासीन दल को अहमियत देते रहे हैं।
जब 2019 में चुनाव आया तो उससे पहले इंडियन नेशनल लोकदल मजबूत स्थिति में था। उसने बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन भी कर लिया था परंतु आरोप है कि भाजपा ने ओमप्रकाश चौटाला के परिवार को दो फाड़ कर दिया। जबकि भाजपा ऐसे आरोपों को सिरे से खारिज करती है।
इस बात का सबसे ज्यादा नुकसान इंडियन नेशनल लोकदल को और सबसे ज्यादा फायदा भारतीय जनता पार्टी को हुआ। लब्बो-लुआब यह है कि हरियाणा में लगातार दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई।
2024 के लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं थी। एक बार तो यह भी लगने लगा था कि भाजपा 10 की 10 सीट भी हार सकती है ।
आप जानते हैं कि अंत में भाजपा बेशक लोकसभा के चुनाव में 5 सीट जीत गई लेकिन इसके बावजूद विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस बहुत मजबूत स्थिति में दिख रही थी। उसकी सरकार बनने के आसार कम नहीं थे । लेकिन इस चुनाव में वह निर्दलीय उम्मीदवार भाजपा के लिए वरदान सिद्ध हो गए जो कांग्रेस की टिकट के दावेदार थे। बताते हैं कि कांग्रेस के नेताओं ने ओवर कॉन्फिडेंस के कारण इन्हें मनाया नहीं और भाजपा ने इन्हें चुनाव से हटने नहीं दिया और यही स्थिति कांग्रेस के लिए घातक सिद्ध हुई और भारतीय जनता पार्टी जहां 19-21 सीटों की स्थिति में दिख रही थी, 50 के आसपास पहुंच गई। देखा जाए तो 2024 के विधानसभा के चुनाव का यह टर्निंग पॉइंट था।
अब भाजपा फिर खड़े-खड़े तमाशा देखने की स्थिति में आती दिख रही है। विशेषज्ञ महसूस कर रहे हैं कि निकट भविष्य में यह देखने को मिल सकता है कि इंडियन नेशनल लोकदल और जेजेपी के नेता न खुद सोएंगे ना कांग्रेस के नेताओं को सोने देंगे। इसका अर्थ और तात्पर्य आप समझ सकते हैं।
ऐसी स्थिति बनती नजर आ रही है कि भाजपा के नेता लंबी तानकर चैन की नींद सोने की स्थिति में आ जाएंगे। क्योंकि जिस विपक्ष को सत्ता पक्ष के खिलाफ लड़ना होता है यदि वह आपस में ही लड़ेगा तो सत्ता पक्ष पर कोई अंकुश नहीं लग पाएगा। लगता है कि कई निर्णायक राजनीतिक घरानों पर आधारित रहती आई हरियाणा की जटिल राजनीति को भाजपा ने अपने लिए सरल बना लिया है।