उत्तराखंड

मसूरी: जलवायु परिवर्तन पर देश के वैज्ञानिकों ने किया कार्यशाला में मंथन

मसूरी से वरिष्ठ संवाददाता सतीश कुमार की रिपोर्ट : जलवायु परिवर्तन से पूरे देश के वनों व वन्य जंतुओं पर पड़ने वाले प्रभाव व इसके समाधान के लिए विनोग वन्य जंतु विहार केम्पटी के सभागार में राष्ट्रीय स्तर की एक फील्ड कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से आये वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों ने इस संबंध में अपने विचार व्यक्त किए व जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले प्रभावों व उसके समाधान पर सुझाव दिए ताकि इसका समाधान हो सके।

जलवायु परिवर्तन पर आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि डीएफओ मसूरी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक जटिल स्टडी है जिसमें कई तरह के वॉयोमैटिक फैक्टर, क्लाइमेंटिक फैक्टर है जिसको समझने के लिए कई शोध चल रहे हैं जिसके तहत भारत सरकार पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 13 प्लाट पूरे देश में चुने है जिसमें इस पर चर्चा की गई कि किस तरह इस समस्या से निपटा जा सकता है। जो देश भर में 13 प्लाट चयनित किए गये उसमें एक मसूरी वन प्रभाग का विनोग वन्य जंतु सेंचुरी भी है।

यहां कार्यरत वन विभाग के अधिकारी, व कर्मचारी उनकी तकनीकि को अपडेट करने व नई तकनीक को बढाने के लिए एफआरआई ने इस कार्यशाला का आयोजन किया है। इसमें एफआरआई देहरादून के साथ ही आईआईएससी बैंगलौर, जबलपुर, रांची आदि संस्थानों के वैज्ञानिक व विशेषज्ञ इसमें प्रतिभाग कर रहे हैं। जो किसी न किसी तहर के जलवायु परिवर्तन पर चर्चा कर सकें।

जलवायु परिवर्तन से हो रहे प्रभावों व कारकों को कम किया जा सके। एफआरआई के हेड फोरेस्ट डिवीजन डा. अमित पांडे ने कहा कि जैसे जैसे मौसम परिवर्तन हो रहा है, पर्यावरण बदल रहा है वैसे वैसे जीव जंतुओं की गतिविधियां भी बदल रही हैं। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से वनों व वनों के जीव जंतुओं की बीमारियों पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। जो माइक्रोप्स पहले डिजीज काज नहीं करते थे वह अब डिजीज काज कर रहे है।

ये मेजर बदलाव है। जलवायु परिवर्तन से कार्बन डाई आक्साईड बढ़ रही है,फोटोसेंथेसेस बढ़ रही है जिससे न्यूट्रीयन की कमी पड़ रही है इसमें यह पता लगाया जाता है कि कौन से माइक्रोप्स है जो पेड़ो की मदद कर सकते हैं। वहीं कई इंसेक्स भी ऐसे हैं जो पेड़ो को नुकसान पहुंचाते हैं कई बार ऐसा होता है कि जलवायु परिवर्तन से उनके रिपोटेक्टिव कैपिसिटी बढ़ जाती है जिससे पेड़ों को अधिक क्षति पहुंचती है। इसको रोकने के लिए इसका अध्ययन कर वनों के फायदे के लिए जो काम किया जा सकता है उसे करने का प्रयास कर रहे हैं।

जबलपुर मध्य प्रदेश से आये ट्रोपिकल फारेस्ट रिसर्च के वैज्ञानिक अविनाश जैन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर 13 इंस्टीटयूटों में शोध चल रहा है। इसमें एक मध्य प्रदेश में कान्हा नेशनल पार्क के कोर एरिया में दस हेक्टेयर में प्लाट बनाया है जिसमें जलवायु परिवर्तन पर शोध किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट में दो तरह से रिसर्च की जा रही है कि मौसम का वनांे पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और वनों का मौसम पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। इसमें लंबे समय तक मानिटरिंग की जायेगी जो एक दो साल नहीं बल्कि कई सालों तक की जायेगी।

यह नया कदम और अच्छा कदम है। जिसमें सभी स्थानों पर बनाये गये प्लाटों में शोध किया जायेगा व उसके प्रभाव को देखा जायेगा। इसके अच्छे परिणाम आयेगे व इसी के आधार पर वन विभाग को बता सकेंगे कि किस तरह वहां के वनो व मिटटी का प्रबंधन करना है। उन्होंने कहा कि इकोलॉजी व इकोनामी में बैलेंस बनाना होगा। ताकि विकास भी बाधित न हो व वन संपदा भी बची रह सके।

वैज्ञानिक एन बाला ने बताया कि जलवायु परिवर्तन में जो शोध किया जा रहा है उसमें वन विभाग की भागीदारी जरूरी है बिना उनके यह नहीं हो सकता क्यों कि उन्होंने काम करना है और वैज्ञानिक शोध करेंगे। इसीलिए यह कार्यशाला आयोजित की गई है कि वैज्ञानिकों व वन विभाग के बीच एक पुल बन सके। यह ऑल इंडिया कोआडिनेटर प्रोजेक्ट है जिसमें वन विभाग के साथ ही चार देश के बड़े संस्थान भी जुडे़ है जिसमें इंडियन काउंसलर फारेस्ट रिसर्च एंड एजुकेशन के नौ व आईआईटी बैंगलौर, फ्रेच इंस्टीटयूट पुडुचेरी आदि हैं।

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