धामी Vs हरदा: BJP-कांग्रेस को लेकर बड़ी अपडेट! देखिए..
जनता के बीच से चुनाव में तैर रहे हैं मुद्दे

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में जीत के लिए प्रत्याशी वो सब कुछ कर रहे हैं जिससे उनके मतदाता प्रभावित हों। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के लिए पार्टियों ने नामांकन करने के बाद प्रत्याशियों ने अपने प्रचार के लिए डोर-टू-डोर अभियान शुरू कर दिया है। इस बार प्रत्याशी जनता को लुभाने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ रहे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दल अपने-अपने अंदाज में जनता के बीच पहुंच रहे हैं। चुनाव का प्रचार प्रसार करने को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हो या हरीश रावत। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बच्चों के साथ फुटबॉल खेलते नजर आए तो वही हरीश रावत कबड्डी खेलते नजर आए। दोनों ही बीजेपी कांग्रेस के नेताओं ने एक एक हाथ खेल की तरफ बढ़ा दिया है। अब देखना यह होगा कि आखिर किसके सर ताज सजेगा तब तक कीजिए इंतजार…?
दरअसल, कांग्रेस-भाजपा या अन्य किसी भी दल की पार्टी अपने बड़े नेताओं के कार्यक्रमों को लेकर उत्तराखंड में कसरत कर रही है। चुनाव मैदान में उम्मीदवार उतारने के बाद अब सियासी दलों की ओर से चुनावी वायदों की बयार बहने लगी है। वहीं उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंक रखी है। दरअसल पिछले वर्ष जुलाई में उत्तराखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने के केवल छह महीने बाद पुष्कर सिंह धामी के सामने सत्ता में वापसी के लिए ‘करो या मरो’ का युद्ध कांग्रेस लड़ रही है। वहीं, धामी के सामने कांग्रेस की अगुवाई कर रहे हरीश रावत जैसे महारथी के खिलाफ भाजपा का सफल नेतृत्व करते हुए फिर से सरकार बनाने की चुनौती है।
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हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एक नया चेहरा है और उनका छह महीने का कार्यकाल भी अच्छा माना जा रहा है, लेकिन अनुभवी रावत के सामने भाजपा के लिए 60 से अधिक सीटें जिताने का लक्ष्य हासिल करना धामी के लिए आसान नहीं है। वर्ष 2017 के पिछले विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए रावत दो सीटों से चुनाव हारने के बावजूद उत्तराखंड की राजनीति में सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक हैं।
कई ओपिनियन पोल सर्वेक्षणों में भी वह मुख्यमंत्री पद के सबसे पसंदीदा उम्मीदवारों के रूप में सामने आए हैं। हरीश रावत को उम्मीद है कि भाजपा सरकार के खिलाफ चल रही सत्ता विरोधी लहर का फायदा कांग्रेस को जरूर मिलेगा, जहां भी वह जा रहे हैं वहां प्रदेश में बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आने के बावजूद भाजपा द्वारा पांच साल में तीन मुख्यमंत्री देने, मंहगाई और बेरोजगारी के बढ़ने की बात उठा रहे हैं।
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प्रदेश में बारी-बारी से दोनों पार्टियों के सत्ता में आने की अब तक की परंपरा को देखते हुए भी इस बार कांग्रेस की उम्मीदों को पंख लगे हुए हैं। दूसरी तरफ भाजपा पिछले पांच साल में विभिन्न क्षेत्रों में शुरू हुई विभिन्न विकास परियोजनाओं के कारण अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। नैनीताल जिले की लालकुआं विधानसभा सीट में इस बार का चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत लालकुआं विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। दूसरी तरफ प्रतिद्वंद्वी के तौर पर भाजपा ने मोहन बिष्ट को प्रत्याशी बनाकर चुनावी मैदान में उतारा है। लेकिन जनता के बीच इस चुनाव को लेकर कितनी तरह की चर्चाएं हैं।
लालकुआं विधानसभा सीट पर जारी चुनावी घमासान के बीच लालकुआं की जनता की अपनी भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियां हैं। कई लोग भाजपा प्रत्याशी मोहन बिष्ट को जमीन पर मजबूत मानते हैं। जबकि कई लोगों का कहना है कि हरीश रावत अगर यहां से विधायक बनते हैं तो निश्चित ही यहां का विकास होगा, क्योंकि वह आगे चलकर मुख्यमंत्री होंगे। कई लोगों का कहना है कि कांग्रेस ने संध्या डालाकोटी को टिकट देने के बाद उनका टिकट काट दिया। लिहाजा बागियों को नहीं बैठाया गया तो वह दोनों के समीकरण बिगाड़ सकते हैं। सूत्र
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दूसरी तरफ स्थानीय लोगों की मानें तो रोजगार सबसे बड़ा विषय है। उसके बाद स्थानीय समस्याएं हैं, जिनमें बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने का मुद्दा है। लालकुआं का मालिकाना हक सहित सीमा विस्तार का मुद्दा है। आईएसबीटी और अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम सहित NH-09 के चौड़ीकरण का मुद्दा है। यह सभी ऐसे विषय हैं जो जनता के बीच से चुनाव में तैर रहे हैं। लोग इन्हीं मुद्दों के आधार पर विधानसभा में विधायक प्रत्याशियों को जिता कर भेजने की बात कह रहे हैं। अपनी वर्चुअल सभाओं में भाजपा के नेता जनता से ‘डबल इंजन की सरकार’ को एक और मौका देने को कह रहे हैं जिससे इन परियोजनाओं को पूरा किया जा सके।
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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद माना कि उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में कम समय मिला, लेकिन उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का संतोष है कि उन्होंने अपने कार्यकाल का एक-एक क्षण प्रदेश की 1.25 करोड लोगों की सेवा में लगाया। हालांकि, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, ‘केवल छह महीने के छोटे से समय में हमने 550 से अधिक निर्णय लिए और उन पर कार्रवाई की। कांग्रेस की पिछली सरकार ने केवल घोषणाएं कीं जो कभी पूरी नहीं हुईं। छोटा होने के बावजूद धामी का कार्यकाल चुनौतियों से भरा रहा जहां उन्हें चारधाम देवस्थानम बोर्ड के गठन को लेकर तीर्थ पुरोहितों के आक्रोश, कोविड की दूसरी लहर के प्रकोप और हरिद्वार कुंभ पर लगे ‘सुपरस्प्रेडर’ के आरोपों का सामना करना पड़ा।
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इसके बाद पिछले साल नवंबर में बारिश से मची तबाही और इसमें अनेक लोगों के मारे जाने की घटना ने भी उनका इम्तहान लिया जिसमें व्यापक नुकसान के बावजूद सरकारी मशीनरी की तत्परता को सराहा गया। धामी ने चारधाम देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का निर्णय लेकर तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी को समाप्त कर दिया और अपने राजनीतिक कौशल का जबरदस्त परिचय दिया। राज्य मंत्रिमंडल में अपने से अधिक अनुभवी मंत्रियों के होने के बावजूद धामी सबको साथ लेकर चले। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सार्वजनिक मंचों से धामी की तारीफ की।
भाजपा और कांग्रेस के बीच उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। 70 सदस्यीय उत्तराखंड विधानसभा के लिए 14 फरवरी को मतदान होगा, जबकि वोटों की गिनती 10 मार्च को होगी। उत्तराखंड को पांच साल के कार्यकाल में तीन-तीन मुख्यमंत्री देने वाली भाजपा क्या दोबारा सत्ता में आएगी? या फिर पूर्व सीएम हरीश रावत प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह की तिगड़ी की बदौलत कांग्रेस वापसी करते हुए एक बार फिर उत्तराखंड में सरकार बनाएगी। इन सभी राजनैतिक सवालों के जवाब आखिरकार 10 मार्च को मतगणना के बाद मिल ही जाएगा। चुनाव का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि आखिर मुख्यमंत्री पद का पसंदीदा उम्मीदवार कौन है? तो कीजिए इंतज़ार..