
शनिवार को वन मुख्यालय भवन स्थित मंथन सभागार में आयोजित बैठक में वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने कहा कि वर्ष 2013 की आपदा के बाद केंद्र सरकार ने यह अधिकार एक निश्चित अवधि के लिए राज्य को दिया था, लेकिन राज्य में खासकर बरसात के समय आपदाओं का सिलसिला लगा रहता है।
इस स्थिति में राज्य को यह अधिकार हमेशा के लिए राज्य सरकार को मिलना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो राज्य के तमाम मसले जैसे विस्थापन, पुनर्वास, छोटी-छोटी सड़कों का निर्माण, भवनों का निर्माण आसानी से हो सकेगा। इसके अलावा केंद्र में फंसे भूमि स्थानांतरण के मुद्दों में भी शिथिलता की मांग की गई।
आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड राज्य को पांच हेक्टेयर वन भूमि हस्तांतरण का अधिकार मिलना चाहिए, ताकि राज्य सरकार जरूरत के हिसाब से वन भूमि का इस्तेमाल कर सके। वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने यह मांग केंद्र से आए अधिकारियों के सम्मुख रखी।
मंत्री ने कहा कि कई मामलों में भूमि स्थानांतरण न हो पाने के कारण सड़कों, पेयजल योजनाओं के काम अटके हुए हैं। भूमि स्थानांतरण में देरी से मंजूरी मिलने पर योजनाओं की लागत बढ़ जाती है। अब आवेदन की प्रक्रिया ऑनलाइन हो गई है, लेकिन बावजूद इसके ऑफलाइन भी प्रस्ताव मंगाया जाता है। इसमें बेवजह का समय नष्ट होता है। उन्होंने के लिए लिए एक निश्चित समयावधि तय करने की बात कही।
वही बैठक में दिल्ली-दून एक्सप्रेस हाईवे के लिए देहरादून के गणेशपुर में भूमि हस्तांतरण और जौलीग्रांट के विस्तारीकण में एलीफेंट कॉरीडोर का मुद्दा भी उठा। बताया गया कि इस मुद्दे पर कुछ संगठनों की ओर से पीआईएल दाखिल की गई है। जिस पर केंद्र की ओर से विभिन्न बिंदुओं पर सूचनाएं मांगी गई हैं।
बैठक में अपर मुख्य सचिव आनंद वर्द्धन, प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन जेएस सुहाग, सदस्य सचिव एनटीसीए और सीजेडए एसपी यादव, निदेशक आईजीएनएफए भरत ज्योति, महानिदेशक आईसीएफआरआई डॉ. अरुण रावत सहित वन विभाग के तमाम अधिकारी मौजूद रहे।