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बड़ी ख़बर: उत्तराखंड सरकार ने चारधाम यात्रा पर लिया बड़ा फैसला

28 जून को हाईकोर्ट ने चारधाम यात्रा पर लगाई रोक

देहरादून:  उत्तराखंड से बड़ी खबर सामने आई है जहां उत्तराखंड सरकार ने चार धाम यात्रा को लेकर बड़ा फैसला किया है। दरअसल उत्तराखंड सरकार ने चारधाम यात्रा पर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एसएलपी को वापस लेने का निर्णय लिया है। चारधाम के कपाट खुलने के बाद से ही प्रदेश में चारधाम की यात्रा स्थगित चल रही है। बीते 28 जून को हाईकोर्ट ने चारधाम यात्रा पर रोक लगा दी थी। जिसके चलते चारधाम यात्रा से जुड़े व्यवसायियों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।

ऐसे में उत्तराखंड राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। जिस पर अभी तक एक भी सुनवाई नहीं हो सकी। ऐसे में अब उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी को वापस लेने का निर्णय लिया है। ताकि इस मामले में जल्द हाईकोर्ट अपना फैसला सुनाए और चारधाम यात्रा को लेकर कोई निर्णायक फैसला हो सके।

वहीं पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने बताया कि सरकार चाहती है कि चारधाम यात्रा पर तत्काल फैसला हो, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी की वजह से काफी विलंब हो रहा है। ऐसे में सरकार अपनी पूरी तैयारी के साथ हाईकोर्च जाएगी और जल्द यात्रा शुरू करने की अनुमति मांगेगी। सतपाल महाराज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी की सुनवाई के लिए अब तक तारीख नहीं मिल पाई है, जिसके चलते बहस नहीं हो पा रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो चारधाम यात्रा का समय भी समाप्त हो जाएगा, जिसे देखते हुए हाईकोर्ट से इस मामले में तत्काल निर्णय लेने का अनुरोध किया जाएगा।

गौर हो, 14 मई को यमुनोत्री धाम, 15 मई को गंगोत्री धाम, 17 मई को केदारनाथ धाम और 18 मई को बदरीनाथ धाम के कपाट खोले गए थे, कोरोना की वजह से चारधाम की यात्रा संचालित नहीं हो पाई है।

विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) न्यायपालिका में एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें आप हायर कोर्ट में जा सकते हैं। आमतौर पर ये सुप्रीम कोर्ट में तब दाखिल की जाती है, जब कोई मामला बेहद महत्व का होने के साथ त्वरित कार्रवाई का होता है और निचली कोर्ट यानी हाईकोर्ट उस पर समय रहते समुचित कार्रवाई नहीं कर रही होती है।

एसएलपी को भारतीय न्याय व्यवस्था में काफी वरीयता की जगह दी गई है। इसे सुप्रीम कोर्ट के खास अधिकार के तहत माना जाता है। इस पर तभी विचार किया जाता है, जब ये आवश्यक कानून-व्यवस्था से जुड़ा हो या निचले स्तर पर न्याय नहीं हुआ हो। ये किसी भी याचिकाकर्ता को इस मामले में खास अधिकार देता है।

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