उत्तराखंड

नेताओं का दामाद होने का भी हो जाता है साइड इफेक्ट !

नेताओं का दामाद होने का भी हो जाता है साइड इफेक्ट !

धर्मपाल वर्मा

चण्डीगढ़।

courtesy i chowk.com

राजनीतिक मामलों में पहले इस बात के कोई मतलब नहीं थे कि किस नेता की रिश्तेदारी किस पार्टी के नेता के साथ है। क्योंकि उस जमाने में सामाजिक संबंध राजनीतिक संबंधों से ज्यादा मजबूत होते थे लेकिन इतना जरूर था कि बहुत नेता जहां अपने बेटों को राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने की चेष्टा करते थे वहीं बेटी को अधिमान देने के लिए दामादों को भी अपनी राजनीतिक विरासत और प्रभाव का प्रसाद देते रहते थे।

1977 में जनता पार्टी जब मजबूती से आगे बढ़ रही थी चुनाव सिर पर थे तो उस समय स्वर्गीय जॉर्ज फर्नांडिस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे। हरियाणा में चौधरी देवीलाल भी जनता पार्टी के बड़े नेता थे और स्वर्गीय चौधरी चांदराम पार्टी के प्रदेश के अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे थे। टिकटो के बंटवारे के समय फर्नांडिस इस बात को लेकर ना खुश और विचलित थे कि कई नेता अपने दामादों के लिए टिकट मांग रहे हैं।

आपको बता दें कि चौधरी देवीलाल ने 1977 में करनाल लोकसभा क्षेत्र से अपने दामाद महेंद्र सिंह लाठर के लिए टिकट मांगी तो प्रदेश अध्यक्ष चौधरी चांदराम अपने दामाद के लिए बबैन विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांग रहे थे। कुछ और नेता भी दामादों के लिए टिकट मांगने लगे तो राष्ट्रीय अध्यक्ष को अच्छा नहीं लगा।

टिकटो को अंतिम रूप देने के समय जॉर्ज फर्नांडिस ने हरियाणा के मामलों में प्रदेश अध्यक्ष स्वर्गीय चौधरी चांदराम को दिल्ली बुलाया ।उस समय लहरी सिंह उनके ड्राइवर हुआ करते थे वह उनकी कई मामलों में मदद भी करते रहते थे एक तरह से सहायक के रूप में भी काम करते रहते थे।

जब टिकटों को लेकर चर्चा हुई तो जॉर्ज फर्नांडिस ने चौधरी चांदराम को सिरसा से लोकसभा का चुनाव लड़ने को कहा। इससे पहले चांदराम बबैन रिजर्व विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते थे । जब उनसे पूछा गया कि वह अपने विधानसभा क्षेत्र बबैन से किसके लिए टिकट चाहते हैं तो उन्होंने तपाक से जवाब दिया कि उनकी जगह उनका दामाद चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा हैं , वे उनकी ही टिकट चाहते हैं।

फर्नांडिस इससे सहमत नहीं हुए और नाराज होते हुए बोले कि ऐसा नहीं होगा । बोले, सारे अपने दामादों को चुनाव लड़ाना चाहते हैं ।चौधरी देवीलाल अपने दामाद की टिकट चाहते हैं आप अपने दामाद को टिकट दिलाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि कोई और उम्मीदवार तलाश करो। इसी दौरान उन्होंने पूछा कि यह आपका नौजवान ड्राइवर कौन है!

वह यह जानना चाहते थे कि क्या वह भी रिजर्व कैटेगरी से ताल्लुक रखता है। जब श्री चांदराम ने बताया कि यह भी रविदासी समुदाय से ताल्लुक रखता है मतलब रिजर्व कैटिगरी से ही है। इस पर राष्ट्रीय अध्यक्ष ने लगभग आदेश देते हुए कहा कि बबैन से इसका फॉर्म भराओ। उन्होंने खुद भी चौधरी लहरी सिंह को बोल दिया कि आप जाइए और नामांकन पत्र दाखिल कीजिए। उन्हें अथॉरिटी लैटर दे दिया गया। चौधरी चौधरी लहरी सिंह ने भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और सिर पर पांव रखकर भागे।

बड़ी मुश्किल से कुरुक्षेत्र पहुंच पाए और फॉर्म भरने में सफल हो गए। चुनाव के परिणाम आए तो लहरी सिंह को बबैन से जनता पार्टी का विधायक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह 1991 में दूसरी बार फिर विधायक बने मंत्री भी रहे। दीगर बात यह है कि चौधरी चांदराम लंबे समय से बबैन विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते आ रहे थे। 1977 में जब वह पार्टी के अध्यक्ष बने तो उन्हें बता दिया गया था कि वे अब सिरसा से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। बता दें कि उनके दामाद एक्साइज एंड टैक्सेशन विभाग में अच्छे पद पर सेवारत थे। उन्होंने दामाद की टिकट मिलने से पहले ही नौकरी छुड़वा दी और चुनाव की तैयारी में भी लगा दिया था।

चौधरी चांदराम को अपने वरिष्ठ होने और पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष होने का इतना भरोसा तो था ही कि उन्हें अपने दामाद को वह भी उनकी अपनी सीट पर विधानसभा की टिकट दिलाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाए।

इसे आप चौधरी लहरी सिंह की किस्मत के रूप में भी देख सकते हैं। सोनीपत जिले के नाथूपुर गांव से संबंध रखने वाले चौधरी लहरी सिंह बबैन जाकर विधायक बन गए।

उधर चौधरी देवीलाल अपने दामाद महेंद्र सिंह लाठर को करनाल से लोकसभा की टिकट दिलाने में सफल हुए और उस चुनाव में लाठर भी सांसद बन गए थे।

अब पता चला कि कांग्रेस हरियाणा में प्रदेश अध्यक्ष बनाने के मामले में विरोधी दल के नेताओं का दामाद होना एक दिक्कत बन गई है। प्रदेश अध्यक्ष के लिए पार्टी की अपेक्षा किसी ओबीसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की लग रही है।

इसका कारण यह भी माना जा रहा है कि कि पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फिर से सीएलपी के नेता के रूप में स्वीकार करने को तैयार हो गई है। ऐसे में जातीय समीकरणों को साधने और ओबीसी को प्रतिनिधित्व देने के मामले में यह योजना बनी कि किसी यादव नेता को यह जिम्मेदारी दी जाए।

सबसे पहले नाम महेंद्रगढ़ के नेता राव दान सिंह का आया लेकिन उनके नाम पर आगे विचार इसलिए नहीं हुआ या कि उनकी एक रिश्तेदारी को बाधा के रूप में देखा जाने लगा। बताया गया कि राव दान सिंह का बेटा राव नरबीर सिंह का दामाद है जो भाजपा के नेता हैं और प्रदेश में मंत्री हैं। राव दान सिंह की दावेदारी में एक दिक्कत और भी थी लेकिन शायद बेटे का गैर कांग्रेसी नेता के दामाद होने को एक अयोग्यता करार दिया गया।

जैसे तैसे एक नाम और आया वह था हरियाणा प्रदेश युवक कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व विधायक चिरंजीव राव का। युवा है ,पुरानी और मजबूत पारिवारिक पृष्ठभूमि है लेकिन बताया जा रहा है कि उनके नाम पर भी विचार इसलिए नहीं हुआ कि वे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के दामाद हैं।

यद्यपि यह फैसला अभी लंबित है लेकिन यह सच्चाई है कि इस बात को फिर से एक अयोग्यता के रूप में प्रस्तुत किया गया है। लेकिन इस उठा पटक का लाभ एक बार फिर उसी राव नरेंद्र सिंह को मिलता दिख रहा है जिनका नाम राव दान सिंह की दावेदारी नामंजूर होने के बाद आया था।

इन परिस्थितियों से एक बात जरूर समझ में आ रही है कि ऐसे ही चलता रहा तो भविष्य में नेताओं को अपने बच्चों की शादी करते समय यह बात मन मस्तिष्क में रखनी होगी कि वह अपनी बेटी या बेटे की शादी विरोधी पार्टी से संबंधित किसी परिवार में करने से पहले सौ बार सोचें।

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