संगठन चाहे विधान, रहेगी भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ही कमान!

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चंडीगढ़।
कांग्रेस हाई कमान के हरियाणा मामलों के ताजा फ़ैसलों से कांग्रेस में हालात बेशक पहले से भी ज्यादा खराब हो जाएं लेकिन स्थिति यह बन रही है कि अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा का पक्ष बहुत मजबूत नजर आने लगेगा। सोमवार 6 अक्टूबर को चंडीगढ़ में आयोजित नए प्रदेश अध्यक्ष के शपथ ग्रहण समारोह के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को हरियाणा के कांग्रेस के भविष्य के दर्पण के रूप में देखा जा सकेगा।
बेशक भूपेंद्र सिंह हुड्डा राव नरेंद्र सिंह की बजाए राव दान सिंह को अध्यक्ष बनाने की वकालत करते नजर आ रहे थे लेकिन उपरोक्त कार्यक्रम यह साबित कर सकता है कि राव नरेंद्र भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए दूसरे उदयभान की तरह ही काम करते नजर आने वाले हैं। लेकिन यहां लोग यह देखना चाहेंगे कि कार्यक्रम में राव दान सिंह शामिल होते हैं या नहीं। कांग्रेस और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की बात करें तो यह निर्णय दोनों के लिए निर्णायक साबित होने वाला है। बताया जा रहा है कि राव नरेंद्र के अध्यक्ष बनाए जाने के बाद राव दान सिंह खुश नहीं है।
यहां एक बात बहुत महत्वपूर्ण यह है कि 6 अक्टूबर के इस कार्यक्रम में कांग्रेस के नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला तो शामिल हो सकते हैं लेकिन कुमारी शैलजा चौधरी बीरेंद्र सिंह और उनके पुत्र बृजेंद्र सिंह का आना कठिन लग रहा है। लोग इन चीजों के अलग-अलग मतलब निकालेंगे।
हरियाणा की कांग्रेस की यह स्थिति नए प्रदेश अध्यक्ष राव नरेंद्र के लिए एक द्वंद्व बन गई है। उनके समर्थक ऐसा महसूस कर रहे हैं कि बेशक भूपेंद्र सिंह हुड्डा अध्यक्ष के रूप में राव नरेंद्र सिंह का समर्थन नहीं कर रहे थे लेकिन अध्यक्ष का फैसला होने के बाद दूसरे नेताओं मतलब कुमारी शैलजा चौधरी वीरेंद्र सिंह आदि ने भी राव नरेंद्र सिंह को उस तरह से स्वीकार नहीं किया है। बताते हैं कि उनके दिमाग में यह बात है कि पहले राव नरेंद्र की कार्य शैली और रुझान का आइडिया लिया जाएगा। जब राव नरेंद्र सिंह के पहले प्रमुख कार्यक्रम में ही यह नेता उनके साथ खड़े नजर नहीं आएंगे तो
इस स्थिति का लाभ स्वाभाविक तौर पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मिलना तय है । अब यह चीज नजर भी आने लगी है।
शपथ ग्रहण संपन्न होने के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा राव नरेंद्र सिंह को कह कर अपने बहुत से समर्थकों को संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कराने में सफल हो सकते हैं। जिन निर्णायक और महत्वपूर्ण पदों पर अध्यक्ष के अपने लोग होने चाहिए वहां हुड्डा के अपने लोग काम करने लगेंगे तो आप समझ सकते हैं कि इसका संदेश क्या जाएगा।
कहने का मतलब यह है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ ताल में ताल मिलाना नए अध्यक्ष की व्यवहारिक मजबूरी है। अभी से ऐसा लग रहा है कि चंडीगढ़ के सोमवार के कार्यक्रम के संपन्न होने के बाद लोग यह महसूस करेंगे कि हर चीज में हस्तक्षेप और दबदबा भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनकी टीम का ही था।
इस कार्यक्रम के बाद कांग्रेस में बैठे भूपेंद्र सिंह हुड्डा विरोधी नेताओं को कुछ न कुछ ऐसा नया करने को मजबूर होना पड़ सकता है जो अभी किसी को नजर नहीं आ रहा। क्योंकि यह बात शीशे की तरह साफ होने जा रही है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा न केवल सीएलपी के लीडर हो गए हैं बल्कि प्रदेश में कांग्रेस का संगठन भी उनके इशारों पर ही काम करने जा रहा है।