“उत्तराखंड में वनाधिकार कानून की अनदेखी: बिंदुखत्ता राजस्व गांव का मुद्दा विधानसभा में उठाने की तैयारी”

रिपोर्ट गौरव गुप्ता।
लालकुआं। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, क्षेत्र की तमाम ज्वलन्त समस्याओं को लेकर जनप्रतिनिधि सक्रिय नजर आ रहे हैं, इसी के तहत बिंदुखत्ता राजस्व गांव को लेकर उत्तराखंड विधानसभा के आगामी सत्र में वन अधिकार अधिनियम 2006 से संबंधित मुद्दा एवं इससे संबंधित प्रश्न उठाने को लेकर जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष एवं नैनीताल दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ में कई बार डायरेक्टर रहे प्रमोद कॉलोनी द्वारा हल्द्वानी के विधायक सुमित हृदेश और उत्तराखंड विधानसभा में उप नेता भुवन कापड़ी से भेंट कर उनसे बिंदुखत्ता राजस्व गांव को लेकर यह निवेदन किया हैं कि वर्ष 2006 में पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा संसद में पारित वन अधिकार अधिनियम 2006 (Forest Rights Act) का उद्देश्य, देशभर में वनभूमि पर पीढ़ियों से आश्रित समुदायों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय का समाधान करना था, परंतु अधिनियम को पारित हुए लगभग 19 वर्ष बीत चुके हैं, इसके बावजूद उत्तराखंड में इसकी प्रगति शून्य के बराबर है। जबकि उत्तराखंड 71 प्रतिशत वन क्षेत्र के साथ भारत का सर्वाधिक प्रतिशत वन क्षेत्र वाला राज्य है, अतः स्वाभाविक रूप से यहां वनाश्रितों की संख्या भी अधिक है।
उन्होंने बताया कि जहां एक ओर देशभर में अब तक वनाधिकार के लगभग 25 लाख दावे स्वीकृत कर वनाश्रितों को दो करोड़ बत्तीस लाख एकड़ वनभूमि पर अधिकार पत्र वितरित किए जा चुके हैं साथ ही लगभग 1600 से अधिक वन ग्रामों को राजस्व ग्राम का दर्जा दिया जा चुका है, वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड में मात्र 185 दावों को स्वीकृति मिली है, और केवल 6 ग्रामों को राजस्व ग्राम का दर्जा दिया गया है परन्तु किसी को भी एक इंच भूमि पर मालिकाना हक/अधिकार पत्र नहीं दिया गया है, अधिकारी वर्ग में जन जागरूकता की कमी के कारण वर्तमान में नैनीताल, उधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून सहित कई पर्वतीय जनपदों में भी सैकड़ों वर्षों से वन आश्रित समुदाय को अर्हता पूर्ण करने के बावजूद वनाधिकार कानून का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
इस विषय को विधानसभा में रखकर चर्चा करवाने की आवश्यकता है, जिससे न केवल वर्तमान उत्तराखंड सरकार की जिम्मेदारी तय होगी, बल्कि अधिकारी वर्ग एवं आम जन में भी वनाधिकार कानून के प्रति जन जागरूकता बढ़ेगी और भविष्य में पीड़ितों को उनके अधिकार प्राप्त हो सकेंगे। उन्होंने कहा कि इस विषय को उत्तराखंड विधानसभा में उठाने के साथ ही संलग्नानुसार प्रश्न भी रखने का कष्ट करेंगे।
संलग्न-
देश भर में एफ.आर.ए. से बनाये गये राजस्व ग्रामों का राज्यवार विवरण।
देश भर में एफ.आर.ए. के तहत स्वीकृत दावों एवं उस भूमि का राज्यवार विवरण जिस पर वनाश्रितों को अधिकार पत्र वितरित कर दिये गये हैं।
वनाधिकार कानून 2006 पर कुछ महत्तवपूर्ण बिन्दु ।
राजस्व ग्राम बनाने के सम्बन्ध में जनजाति मंत्रालय का प्रमुख पत्र 08.11.2013
विधानसभा में उठाये जाने हेतु प्रश्न।