उत्तराखंड

डॉ० डी० सी० पसबोला बने सर्टिफाइड “हिप्नोटिस्ट एवं हिप्नोथेरेपिस्ट”

देहरादून: अन्तर्राष्ट्रीय ब्लिसवाना एकेडमी, डालास, टैक्सास और यूडेमी, गुड़गांव, हरियाणा द्वारा संचालित पांच दिवसीय “हिप्नोसिस एवं हिप्नोथेरेपी डिप्लोमा” – सर्टीफिकेशन प्रशिक्षण प्राप्त कर डॉ० डी० सी० पसबोला सर्टीफाइड “हिप्नोटिस्ट एवं हिप्नोथेरेपिस्ट” बन गये हैं।

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जो कि यूडेमी तथा ब्लिसवाना एकेडमी द्वारा निर्मित एवं संचालित मान्यताप्राप्त कोर्स है। साथ फेडरेशन आफ योगा एंड होलिस्टिक थेरेपी (FOYTH) द्वारा मान्यताप्राप्त एवं बीजीआई (BGI) ग्रुप द्वारा इन्स्योर्ड कोर्स है। जिसमें इस संस्थान द्वारा प्रशिक्षण प्रदान‌ किया जाता है।

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डॉ० पसबोला ने आगे जानकारी देते हुए बताया कि सम्मोहन (Hypnosis) वह कला है जिसके द्वारा मनुष्य उस अर्धचेतनावस्था में लाया जा सकता है जो समाधि, या स्वप्नावस्था, से मिलती-जुलती होती है, किन्तु सम्मोहित अवस्था में मनुष्य की कुछ या सब इन्द्रियाँ उसके वश में रहती हैं। वह बोल, चल और लिख सकता है; हिसाब लगा सकता है तथा जाग्रतावस्था में उसके लिए जो कुछ सम्भव है, वह सब कुछ कर सकता है, किन्तु यह सब कार्य वह सम्मोहनकर्ता के सुझाव पर करता है।कभी कभी यह सम्मोहन बिना किसी सुझाव के भी काम करता है और केवल लिखाई और पढ़ाई में भी काम करता है जैसे के फलाने मर्ज की दवा यहाँ मिलती है इस प्रकार के हिप्नोसिस का प्रयोग भारत में ज्यादा होता है। जैसे की किसी के शरीर पे चोट लगी है और उसको बहुत दर्द हो रहा है; तो उसको सम्मोहीत करके उसका ध्यान किसी और दूसरी जगह पे ले जाया जा सकता है और उसका दर्द कम कर सकते है।

इतिहास: भारत में अति प्राचीन काल से सम्मोहन तथा इसी प्रकार की अन्य रहस्यमय, अद्भुत प्रभावोत्पादक, गुप्त क्रियाएँ प्रचलित हैं। अन्य पूर्वी देशों में भी ये अज्ञात नहीं रही हैं। यह निश्चय है कि यदि सबने नहीं तो इनमें से अधिकांश ने इन क्रियाओं का ज्ञान भारत से प्राप्त किया, जैसे तिब्बत ने। नटों, साधुओं तथा योगियों में इन क्रियाओं के जाननेवाले पाए जाते हैं। इन विशिष्ट मण्डलों के लोगों को छोड़कर अन्य मनुष्यों में इनका ज्ञान बहुत थोड़ा, या कुछ भी नहीं, रहता। अनधिकारी के ज्ञाता होने से अनिष्ट की आशंका समझ, पूर्वी देशों में इस विषय के समर्थ लोगों ने इसे सर्वथा गोपनीय रखा। इस कारण आज भी इस सम्बन्ध में जो कुछ निश्चित रूप से लिखा जा सकता है वह यूरोप की देन है, जहाँ इसका वैज्ञानिक अध्ययन करने की चेष्टा की गई है।

अठारहवीं सदी के मध्य में फ्रांज़ ए. मेस्मर नामक वियना के एक चिकित्सक ने सर्वप्रथम सम्मोहन का अध्ययन प्रारम्भ किया। इन्होंने कुछ सफलता तथा बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त की, किन्तु इस सम्बन्ध में जिन सिद्धान्तों की इन्होंने कल्पना की वे गलत सिद्ध हुए। जो सिद्धान्त आजकल स्वीकृत हैं, उनका विवेचन लीबाल्ट (Liebault) तथा वेर्नहाइम (Bernheim) नामक दो फ्रांसीसी डाक्टरों ने किया था। इनके अनुसार सम्मोहन का अनिवार्य प्रवर्तक सुझाव या प्रेरणा का संकेत होता है।

स्वरूप: यह निश्चित रूप से समझ लेना चाहिए कि सम्मोहनकर्ता जादूगर, अथवा दैवी शक्तियों का स्वामी, नहीं होता। मनुष्यों में से अधिकांश प्रेरणा या सुझाव के प्रभाव में आ जाते हैं। यदि कोई आज्ञा, जैसे “आप खड़े हो जाँए” या “कुर्सी छोड़ दें”, हाकिमाना ढंग से दी जाए, तो बहुत से लोग इसका तुरन्त पालन करते हैं। यह तो सभी ने अनुभव किया है कि यदि हम किसी को उबासी लेते देखते हैं, तो इच्छा न रहने पर भी स्वयं उबासी लेने लग जाते हैं। दूसरों के हँसने पर स्वयं भी हँसते या मुस्कराते हैं तथा दूसरों को रोते देखकर उदास हो जाते हैं।

जो लोग दूसरों के सुझावों को इच्छा न रहते हुए भी मान लेते हैं, वे सरलता से सम्मोहित हो जाते हैं। सम्मोहित व्यक्ति के व्यवहार में निम्नलिखित समरूपता पाई जाती है :

आज्ञाकारिता
कुछ लोगों का मत है कि जो मनुष्य पूर्ण रूप से सम्मोहित हो जाता है वह सम्मोहनकर्ता की दी हुई सब आज्ञाओं का पालन करता है, किन्तु कुछ अन्य का कहना है कि सम्मोहित व्यक्ति के विश्वासों के अनुसार यदि आज्ञा अनैतिक या अनुचित हुई, तो वह उसका पालन नहीं करता और जाग जाता है।

मिथ्या प्रतीति तथा भ्रम
सम्मोहनकर्ता यदि कहता है कि दो और दो सात होते है, तो सम्मोहित व्यक्ति इसे मान लेता है। यदि सम्मोहनकर्ता कहता है कि तुम घोड़ा हो, तो वह व्यक्ति हाथों और घुटनों के बल चलने लगता है।

मतिविभ्रम
सम्मोहित व्यक्ति को ऐसी वस्तुएँ जो उपस्थित नहीं है दिखाई तथा सुनाई जा सकती है और उनका स्पर्श व अनुभव कराया जा सकता है। इस अवस्था में यह भी मनवाया जा सकता है कि वह वस्तु उपस्थित नहीं है जो वास्तव में उपस्थित है। यदि प्रेरणा दी जाए कि जिस कुर्सी पर सम्मोहित व्यक्ति बैठा है वह वहाँ नहीं है, तो वह व्यक्ति मुँह के बल जमीन पर लुढ़क जाएगा।

ज्ञानेन्द्रियों पर प्रभाव
सम्मोहनकर्ता के सुझाव पर सम्मोहित व्यक्ति के शरीर का कोई भाग सुन्न हो जा सकता है, यहाँ तक कि उस भाग को जलाने पर भी उसे वेदना न हो। इन्द्रियों को तीव्र बनानेवाली प्रेरणा भी कार्यकारी हो सकती है, जिससे सम्मोहित व्यक्ति असाधारण बल का प्रयोग कर सकता है, या कही हुई बात को भी दूर से सुन सकता है।

परासम्मोहन विस्मृति
साधारणतया सम्मोहनावस्था में हुई सब बातों को सम्मोहित व्यक्ति भूल जाता है।

सम्मोहनोत्तर प्रेरणा
व्यक्ति की सम्मोहनावस्था में दिए हुए सुझावों या आज्ञाओं का, पूर्ण चेतनता प्राप्त करने पर भी, वह पालन करता है। यदि उससे कहा गया है कि चैतन्य होने के दस मिनट बाद नहाना, तो उतना समय बीतने पर वह अपने आप ऐसा ही करता है।

दैनिक जीवन में सम्मोहन: प्रतिदिन के जीवन में सम्मोहन के अनेक दृष्टान्त मिलते हैं। राजनीतिक या धार्मिक नेता अपने भाषणों से लोगों को सम्मोहित कर लेते हैं। आत्मसम्मोहन भी सम्भव है। किसी चमकीली वस्तु पर दृष्टि स्थिर रखकर यह अवस्था उत्पन्न की जा सकती है। अत्यधिक उत्तेजना, भय आदि से मनुष्य सम्मोहित अवस्था जैसा व्यवहार करने लगता है, या उत्तेजना के क्षण के पहले या बाद की घटनाओं को भूल जाता है। वह कौन है, उसका पिछला जीवन क्या था, यह भी भुलाया जा सकता है।

आकस्मिक शारीरिक चोट, मानसिक क्षोभ, अथवा उत्तेजना के कारण, हाथ पैर रहते कभी कभी मनुष्य लूले या लँगड़े के सदृश व्यवहार करने लगता है, दृष्टि का लोप हो जाता है, अथवा वह नीन्द में ही चलने फिरने लग सकता है। दृष्टि विभ्रम, या जाग्रत अवस्था में स्वप्न देखने के अनेक उदाहरण मिलते हैं। धार्मिक उत्तेजना से सम्मोहित होकर कुछ लोग अनजाने अर्धचेतनावस्था में हो जाते हैं और कल्पित होकर कुछ लोग अनजाने अर्धचेतनावस्था में हो जाते हैं और कल्पित दृश्य या वस्तुएँ देखते या सुनते हैं। बाद में उन्हें विश्वास हो जाता है कि यह सब वास्तविक था।

कुछ लोग सम्मोहन में कुशल होते हैं। अन्य लोग इनके प्रभाव में आकर, अर्धचेतनावस्था में कुर्सी, मेज आदि इधर उधर हटा देते हैं या हिलाते हैं, अनुपस्थित वस्तु देखते या सुनते हैं। श्रद्धा से रोगमुक्ति का आधार भी सम्मोहन ही है। भीड़ मे दूसरों से प्रभावित होकर मनुष्य सम्मोहित व्यक्ति के सदृश आचरण करने लगता है। भावातिरेक में भीड़ों के विवेकहीन आचरण का यही कारण है।

उपयोग: सम्मोहन का उपयोग कुछ रोगों को दूर करने में तथा प्रसव में किया जाता है। कुछ चिकित्सकों ने शल्यचिकित्सा में भी इसे वेदनाहर पाया है। सम्मोहन की कार्यपद्धति से मानस तथा मानसिक रोगों के अध्ययन में सहायता मिलती है। साथ ही साथ कुछ मनोचिकित्सकों के द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को सम्मोहित कर उसके जीवन के वह पल उसकी श्मृति से मिटा दिये जाते हैं जिन्हें वह भूलना चहता हो। व इस क्रिया के द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को उसके (पुर्वजन्म) को याद करा दिया जाता है। किन्तु इस बात का कोई ठोस आधार नहीं है।

सन्दर्भ: किसी सम्मोहनकर्ता के द्वारा किसी व्यक्ति विशेष के मस्तिष्क पर नियन्त्रण करने व उससे स्वयं के कहे अनुसार व्यवहार कराने की क्रिया को सम्मोहन कहा जाता है। जिसका उपयोग आधुनिक युग में विभिन्न चिकित्सकिय कार्यों के लिए किया जाता है।

कोर्स की समाप्ति पर यूडेमी तथा ब्लिसवाना एकेडमी द्वारा “डिप्लोमा इन हिप्नोसिस एवं हिप्नोथेरेपी” का प्रमाण पत्र प्रदान किया गया है।

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