उत्तराखंड

डाकबंगला नहीं भूत बंगला कहिए जनाब…हेरिटेज बिल्डिंग का कोई सुधलेवा नहीं

डाकबंगला नहीं भूत बंगला कहिए जनाब…हेरिटेज बिल्डिंग का कोई सुधलेवा नहीं

रिपोर्ट -गौरव गुप्ता: – हल्द्वानी – कभी अंग्रेजों द्वारा बनाया गया शहर के तिकोनिया चौराहा स्थित यह डाकगबंगला अब अपनी बदहाली से आजीज आ चुका है। चारों तरफ हरे भरे वातावरण के बीच स्थित यह डाकबंगला आज जर्जर स्थिति में पहुंच चुका है। इस ओर न तो किसी अधिकारी का ध्यान है और न ही इस हेरिटेज भवन को बचाने के लिए किसी ने अभी तक कोई कदम उठाया है। ब्रिटिश हुकूमत ने इसे बनवाया था सजाया संवारा था पर अब यह किसी भूत बंगले से कम नहीं लगता। इमारत बाहर से दिखने में तो ठीक लगती है पर अंदर का दृश्य देख आपका सर चकरा जाएगा कमरे में पसरी सिलन की बदबू आप का दम घोंटने के लिए काफी है। कमरे की हालत बद से बदतर हो चुकी है , शौचालय तो किसी काम का नहीं मगर ताज्जुब की बात है वीआईपी मूवमेंट में ऐसी हालत में भी लोग यहां रहने को राजी हैं, जिसके पीछे की वजह है फ्री में इन कमरों का मिल जाना कॉलेज के छात्रनेताओं और मंत्री विधायक और नेता जी के करीबियों का यहां आना जाना रहता है। जगह-जगह शराब और बियर की बोतलें आप को पड़ी दिख जाएंगी, कमरों में फैनी गंदगी और बिखरा पड़ा कमरा काफी है यहां की पोल खोलने के लिए पर इस बात से यहां किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता.

वहीं जब इस बात की पड़ताल की गई की इस डाकबंगले से कितनी आय अर्जित हो जाती है तो यहां के चौकीदार ने बताया कि पूछिए मत साहब यहां तो सिर्फ फ्री सर्विस वाले ही आते हैं। रजिस्टर तो जाने किस जमाने से नहीं भरा गया…आलम यह है कि किसी सक्षम अधिकारी को यहां से होने वाली आया तक का पता नहीं। जब अधिकारियों से बात की गई तो वे भी इस बारे में कुछ भी कहने से बचते नजर आए। सिटी मजिस्ट्रेट का कहना है कि इस गेस्ट हाउस की बुकिंग हमारे द्वारा की जाती है और इससे मिलने वाले राजस्व लोकनिर्माण विभाग को जाता है।

वहीं इस बारे में जब लोकनिर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता अशोक कुमार से बात की गई तो उनका कहना है कि आरक्षण अधिकारी सिटी मजिस्ट्रेट हैं और इसके जीर्णोद्धार के लिए काफी धनराशि की आवश्यक्ता है, हमने हेरीटेज बिल्डिंग के रूप में इसकी कंसल्टेंसी ले ली है और एक प्रस्ताव शासन को जल्द भेजा जाना है, और शासन की ओर से स्वीकृति मिलने पर ह आगे कुछ कहा जा सकता है।

बहरहाल देखना होगा की आखिर अभी और कितना वक्त लगता है इस डाकबंगले के अस्तित्व को बचाने में…

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