विविध

कोयले की कसक! महसूस होने लगी तपिश, सरकार से लेकर..

कोयला कमी से पैदा होने वाले बिजली संकट को लेकर चिंतित राज्य

देश में कोयला संकट की आहट से सरकार से लेकर आम आदमी तक के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। चीन समेत कई देशों में कोयले की कमी से बिजली व अर्थव्यवस्था के संकट की जो खबरें आ रही थीं, उसकी तपिश अब भारत में महसूस होने लगी है। कई राज्य कोयला कमी से पैदा होने वाले बिजली संकट को लेकर चिंतित हैं। कुछ ने तो बिजली कटौती शुरू कर दी है और बिजली का उपयोग संयम से करने की अपील की गई है।

दरअसल, भारत में करीब 135 बिजली संयंत्र कोयले पर निर्भर हैं, जिसमें आधे से अधिक कोयले की कमी से जूझ रहे हैं। देश में सत्तर फीसदी से अधिक बिजली कोयले-ऊर्जा से संचालित होती है। ऐसे में फिक्र है कि कोरोना संकट से उबरते देश की आर्थिकी पर ब्रेक लग सकता है।

दरअसल, खुलती अर्थव्यवस्था में बिजली की मांग में अचानक तेजी आई है, जो वर्ष 2019 के मुकाबले सत्रह फीसदी से भी अधिक है। हालांकि, भारत दुनिया में कोयले का चौथा बड़ा उत्पादक है, मगर खपत ज्यादा होने के कारण आयात करने वाले देशों में दूसरे नंबर पर है। संकट का एक पहलू यह है कि दुनिया में कोयले के दामों में चालीस फीसदी की तेजी है।

सरकार भी आयात कम करना चाहती है। हालिया आयात पिछले दो सालों में सबसे कम है। अत: बिजली संयंत्र देश के कोयले पर निर्भर हो गये हैं। दरअसल, आयात कम होने से देश में कोयले की स्वदेशी आपूर्ति डगमगाई है। वहीं सरकार का कहना है अर्थव्यवस्था में सुधार के चलते बिजली की मांग में अभूतपूर्व वृद्धि, कोयला खदान क्षेत्रों में बारिश, आयतित कोयले के दामों में तेजी और देश के बड़े राज्यों पर बिजली कंपनियों का भारी-भरकम राशि का बकाया होना भी संकट की एक वजह है।

वहीं सरकार के ‘सौभाग्य कार्यक्रम में 28 मिलियन घरों को बिजली से जोडऩे का दबाव भी बिजली खपत पर बढ़ा है। वैसे तो देश में कोयले का पर्याप्त भंडार है लेकिन खदानों में पानी भर जाने के कारण बिजली संयंत्रों तक कोयला पहुंचाने की व्यवस्था को दुरुस्त करने की जरूरत है।

ऐसे समय में जब ग्लोबल वार्मिंग के चलते अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी भारत पर जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करने के लिये दबाव बना रही है, कोयले के आयात को देश के लिये अच्छा विकल्प नहीं कहा जा सकता। दूसरी ओर कोयले के दामों में वृद्धि के दौर में आयात से विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव भी बढ़ेगा, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कोयला बहुत महंगा हो गया है।

इस संकट का त्योहारी सीजन में जहां अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है, वहीं महंगी बिजली का असर फिर उपभोक्ताओं की जेब पर भी पड़ सकता है जो परोक्ष रूप से महंगाई बढऩे का जरिया भी बन सकता है। पहले से महंगाई का दंश झेल रही जनता की परेशानियां बढ़ सकती हैं। बहरहाल, भारत को कोयले पर निर्भरता कम करने तथा ग्रीन ऊर्जा को विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करने के लिये दीर्घकालीन रणनीति बनानी होगी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button