उत्तराखंड

रैली रोहतक में, हलचल सोनीपत में!

रैली रोहतक में, हलचल सोनीपत में!
धर्मपाल वर्मा

चण्डीगढ़।

रैली रोहतक में हलचल सोनीपत में। यह कैसे हो सकता है लेकिन राजनीति ऐसी विधा है जिसमें भी कांटे से कांटा निकलता है।

हरियाणा की सियासत में भविष्य में सोनीपत जिला कांग्रेस इंडियन नेशनल लोकदल और सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होने जा रहा है ।अब प्रदेश के यह तीनों प्रमुख दल सोनीपत में अपनी पॉलिटिकल एक्सरसाइज करते नजर आ सकते हैं। सोनीपत जिले में अब विकास की भी गति तेज हो सकती है।

दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सीमाओं से सटे राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर एक मतलब जीटी रोड क्षेत्र के आर पार स्थित सोनीपत लोकसभा क्षेत्र के रूप में जींद जिले तक फैला हुआ है।
सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी में सोनीपत की राजनीतिक अहमियत को समझते हुए दो महत्वपूर्ण काम किए हैं ।एक आज पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष वह नेता है जिनका ताल्लुक सोनीपत जिले से है। प्रदेश अध्यक्ष मोहनलाल बडोली का पैतृक गांव बडोली सोनीपत जिले के राई विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है। राई की सीमाएं उत्तर प्रदेश और दिल्ली से लगती हैं ।इन दोनों प्रदेशों के लिए राई, गेटवे आफ हरियाणा है। यही कारण है कि दिल्ली और उत्तर प्रदेश की गतिविधियों का हरियाणा की राजनीति पर भी असर पड़ता है। सोनीपत को मध्य नजर रखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने सोनीपत जिले के एक राजनीतिक महत्व के उपमंडल गोहाना को जिला बनाने की घोषणा भी राजनीतिक कारणों से ही की है । पार्टी ने संगठनात्मक दृष्टि से गोहाना को जिला मान लिया है और इसे व्यवहारिक भी बना दिया है।

कांग्रेस की बात करें तो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने राजनीतिक और प्रशासनिक कौशल का परिचय देते हुए सोनीपत जिले पर इस तरह से फोकस किया कि यहां चहुंमुखी विकास के आधार नजर आने लगे हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा की बात करें तो उन्होंने अपने शासनकाल में सोनीपत जिले में शिक्षा का विकास और विस्तार करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। इसी दौर में सोनीपत जिले में न केवल 6- 7 नई यूनिवर्सिटीज बनी, खानपुर कला गांव में एक महिला यूनिवर्सिटी सहित मेडिकल कॉलेज भी स्थापित किया गया।
इस प्रगति के साथ-साथ खानपुर कला को उप तहसील भी बना दिया गया। सोनीपत जिले में राई में राजीव गांधी एजुकेशन सिटी इसी दौर में बनी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस क्षेत्र की मांग और अपेक्षा को मध्य नजर रखते हुए सोनीपत से गोहाना और जींद तक एक नई रेलवे लाइन बिछवाने का महत्वपूर्ण काम किया। यह रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर पूरे सोनीपत लोकसभा क्षेत्र के लिए विकास का आधार बन सकता है।

जल्दी ही इसी रेल मार्ग पर देश की पहली हाइड्रोजन रेलगाड़ी चलती नजर आने वाली है भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मुख्यमंत्री रहते इसी क्षेत्र में एक रेल कोच फैक्ट्री बनाने की घोषणा भी करा दी थी यह अलग बात है कि बाद में भारतीय जनता पार्टी सरकार ने ने इस मामले में विशेष रुचि नहीं दिखाई।

आप सब जानते हैं कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बाद में 2019 के लोकसभा के चुनाव में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के बावजूद सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। इसके दो कारण थे एक शायद हुड्डा को यह गुमान था कि विकास कार्यों को देखते हुए सोनीपत क्षेत्र के लोग उन्हें जबर्दस्त समर्थन देंगे। लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा लगभग डेढ़ लाख वोटो से हार गए। हुड्डा ने अपने पैतृक जिले रोहतक से बाहर पहला और एकमात्र चुनाव सोनीपत से लड़ा था जिसमें वह कामयाब नहीं हो पाए।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने एक और बड़े राजनीतिक कारण से सोनीपत से चुनाव लड़ा था कि उन्हें यह जानकारी मिल गई थी कि उसी दौर में अस्तित्व में आई जननायक जनता पार्टी के नेता दिग्विजय चौटाला सोनीपत से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे।

हुड्डा को इस बात का अच्छी तरह से पता था कि बेशक जननायक जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में दिग्विजय चौटाला जींद से उपचुनाव हार चुके हैं लेकिन लोकसभा के चुनाव में सोनीपत में उम्मीदवार के रूप में वह एक डेढ़ लाख वोट भी ले गए तो यह कांग्रेस और उनके लिए खतरे की घंटी सिद्ध हो जाएगा और फिर चौधरी देवीलाल का परिवार सोनीपत में घुसकर उन्हें झज्जर और रोहतक में भी चुनौती देने की स्थिति में आ सकेगा।

आपको बता दें कि बेशक भूपेंद्र सिंह हुड्डा चुनाव हार गए लेकिन इससे जननायक जनता पार्टी को सोनीपत जिले में बड़ा राजनीतिक नुकसान हुआ और बसपा की महिला प्रत्याशी भी दिग्विजय से ज्यादा वोट बटोर ली गई थी। इन चीजों को राजनीतिक चश्मे से देखा और समझा जा सकता है। इस चुनाव से भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सोनीपत जिले में अपनी ताकत को आजमाने का मौका मिल गया और वह सावधान भी हो गए थे। इसी सावधानी का परिणाम था कि कांग्रेस उनके नेतृत्व में सोनीपत जिले में भाजपा शासन के दौरान भी बरोदा का उपचुनाव जीतने में सफल रही। अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस की दो चिंताएं अच्छे से महसूस की जा सकती हैं । एक यह कि पिछले विधानसभा चुनाव में सोनीपत जिले की 6 सीटों में से कांग्रेस मात्र एक सीट ही जीत पाई। जबकि 2019 में सोनीपत जिले में उसके चार विधायक थे।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा की एक राजनीतिक चिंता यह भी है कि सोनीपत जिले से संबंधित कांग्रेस के कई मजबूत नेता या तो उनसे किनारा कर गए या फिर पार्टी छोड़ गए। भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर सोनीपत जिले की लीडरशिप को खराब करने के भी आरोप लगते रहे हैं। सोनीपत जिले में उनके करीबी रहे जनाधार वाले कई नेता उनका साथ छोड़ गए। इनमें डॉक्टर कपूर सिंह नरवाल, राजवीर दहिया, पूर्व सांसद किशन सिंह सांगवान के पुत्र प्रदीप सांगवान, जय सिंह ठेकेदार ,पूर्व चेयरमैन भूपेंद्र मलिक, पूर्व विधायक जयतीर्थ दहिया और पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा के नाम इस मामले में विशेष तौर पर लिए जा सकते हैं। इनके अलावा भी कांग्रेस में कई लोग हुड्डा या दीपेंद्र सिंह हुड्डा के कारण असंतुष्ट नजर आ रहे हैं। लब्बोलुआब यह है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सोनीपत में अपनी राजनीतिक परिसंपत्ति को बचाने और बढ़ाने के लिए कोई रणनीतिक फैसला जरूर लेना होगा।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए दूसरी बड़ी चिंता यह है कि 25 सितंबर की रोहतक की रैली में सोनीपत जिले का प्रतिनिधित्व सबको प्रभावित करने वाला रहा।

अब हम बात करते हैं इंडियन नेशनल लोकदल की। सोनीपत इस दल के नेताओं के लिए हमेशा इसलिए खास रहा है कि यहां किसान वर्ग स्वर्गीय चौधरी देवीलाल का पक्षधर रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षक कौन है या महसूस किया है कि इस क्षेत्र के किसान वर्ग की प्राथमिकता सदा से यह रही है कि प्रदेश का मुख्यमंत्री जाट हो।

चौधरी देवीलाल 1980 में सोनीपत के सांसद रहे इसके अलावा उन्होंने 1983, 1984 में भी सोनीपत से ही लोकसभा के चुनाव लड़े। स्वर्गीय चौधरी देवीलाल सोनीपत लोकसभा सीट और इस क्षेत्र पर अपना इतना प्रभाव और हक समझते थे कि 1989 के चुनाव में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह को सोनीपत से चुनाव लड़ने को तैयार कर लिया था। वह तो किसी कारण से नामांकन पत्र दाखिल करने सोनीपत नहीं पहुंच पाए वरना चौधरी देवीलाल ने सारी तैयारियां पूरी कर रखी थी।

जनाधार और हस्तक्षेप की बात करें तो इंडियन नेशनल लोकदल के नेता ओमप्रकाश चौटाला के मुख्यमंत्री काल में 2000 में विधानसभा के चुनाव में इंडियन नेशनल लोक दल ने सोनीपत जिले की 6 में से चार सीटों पर जीत दर्ज की थी। गोहाना उपमंडल की दोनों सीट इनेलो ने जीती थी। बरोदा से रमेश खटक, गोहाना से रामकुमार सैनी विधायक बने जबकि रोहट से पदम सिंह दहिया, राई से सूरजमल आंतिल इंडियन नेशनल लोकदल के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतकर आए थे। सोनीपत से निर्दलीय स्वर्गीय देवराज दीवान लगातार दूसरी बार चुनाव जीतकर आए थे।

गोहाना की राजनीतिक महत्व को चश्मा चढ़ा कर भी देखा जा सकता है। आपको बता दें कि इंडियन नेशनल लोकदल हर वर्ष स्वर्गीय चौधरी देवीलाल के जन्मदिन के अवसर पर 25 सितंबर को सम्मान दिवस के रूप में रेलिया करता आ रहा है आज तक उसने सभी रेलिया प्रदेश के किसी ने किसी जिला मुख्यालय पर की है लेकिन उन्होंने ऐसी पहली रैली किसी उप मंडल मुख्यालय पर की तो वह गोहाना ही था। इंडियन नेशनल लोकदल ने 2019 में चौधरी देवीलाल का जन्म दिवस गोहाना में मनाया था । यह इंडियन नेशनल लोकदल के नेताओं के गोहाना के महत्व को दर्शाता है ।यह अलग बात है कि इस आयोजन के बाद इंडियन नेशनल लोकदल दो फाड़ हो गया था।

2000 के चुनाव की बात करें तो कांग्रेस को पूरे जिले में केवल एक कैलाना विधानसभा क्षेत्र में जीत से संतोष करना पड़ा था। जहां से जितेंद्र मलिक कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते थे। इंडियन नेशनल लोकदल ने गोहाना उप मंडल के दोनों विधानसभा क्षेत्रों को हमेशा राजनीतिक निर्णायक हलको के रूप में देखा है। 1972 के बाद 2005 तक प्रदेश में जितने भी विधानसभा के चुनाव हुए किसी की भी सरकार रही, बरोदा विधानसभा क्षेत्र से लगातार इंडियन नेशनल लोकदल के विधायक बनते रहे। इसीलिए इस क्षेत्र को लोक दल के गढ़ के रूप में देखा जाता रहा है।

पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने गोहाना क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण विकास कार्य करके दिखाएं। अब इंडियन नेशनल लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभय सिंह चौटाला भी सोनीपत जिले को मन मस्तिष्क में रखकर चल रहे हैं। अब एक बात और साबित हो रही है कि अभय सिंह चौटाला ने केवल मेहनत कर रहे हैं बल्कि वह राजनीतिक तौर पर काफी परिपक्व और समझदार दिखने लगे हैं।

सोनीपत जिले में अलग-अलग इलाकों में उनकी टीम मजबूत होती जा रही है। अब गोहाना क्षेत्र के लोगों के लिए यह खुशखबरी खास हो सकती है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बेशक थोड़ा समय ले लेकिन उसे गोहाना को जिला बनना ही पड़ेगा। अंत में हम यह कह सकते हैं कि भविष्य में सोनीपत जिला राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बिंदु बनने जा रहा है।

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