उत्तराखंड

खुले आसमान के नीचे शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर नौनिहाल

स्कूल की जर्जर इमारत दे रही हादसों को न्योता

डोईवाला (आशीष यादव):– शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए सरकार तमाम दावे तो करती है, लेकिन धरातल पर स्थिति कुछ और ही नजर आती है। जी हां हम बात कर रहे हैं विकासखंड डोईवाला अंतर्गत राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय शेरगढ़ की। जहां पर विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए अध्यापक तो हैं, लेकिन स्कूल भवन पूरी तरह जर्जर स्थिति में है। जहां छात्रों को शिक्षा ग्रहण करना जान जोखिम में डालने के समान है।

सरकार शिक्षा पर करोड़ों रुपये तो खर्च करती है, पर जमीनी हालात ननिहलों पर भारी पड़ते दिख रहे हैं। चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक दल स्वास्थ ओर शिक्षा सुधारने के बड़े- बड़े दावे करते हैं। पर जैसे ही यह दल सत्ता पर काबिज़ होते हैं, इस ओर कोई ध्यान नही दिया जाता।

अगर हम बात करें डोईवाला विधानसभा क्षेत्र की तो यहां के विधायक लगभग 4 सालों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे, ओर उनके सीएम बनने से यहां की जनता को बड़ी उम्मीदें भी थी, पर आज डोईवाला के दर्जनों स्कूलों की जर्जर स्तिथि को देख सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते है।

हालांकि इस स्कूल को लेकर कॉंग्रेस कार्यकर्ता कई बार आवाज उठा चुके हैं, पर स्कूल भवन बनाये जाने की फाइलें सरकारी कार्यालयों में ही दफन हो कर रह जाती हैं, जिसका खामियाजा ननिहालों को खुले आसमान के नीचे शिक्षा ग्रहण कर भुगतना पड़ रहा है। स्कूल की इमारत जर्जर होने की वजह से कइ बार छत का प्लास्टर गिर गया, जिससे छात्र चोटिल भी हो गये।

इसके बाद स्कूल प्रशासन ने छात्रों की कक्षाएं खुले आसमान के नीची चलाना ही मुनासिब समझा। लेकिन बरसात के दिनों में मजबूरी की वजह से स्कूल के बरामदे में ही बच्चों को पढ़ाना पड़ता है। जिससे बच्चों का ध्यान पढ़ाई में कम और छत से गिर रहे प्लास्टर पर ज्यादा रहता है। लेकिन शिक्षा विभाग ओर सरकारी तंत्र अभी तक इस विद्यालय की सुध नहीं ले पाया है।

जिस कारण यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे कक्षा 6,7 व 8 के लगभग 87 बच्चों को बाहर ग्राउंड व बरामदे में बैठकर पढ़ाई करना उनकी मजबूरी बन गई है। वही पांच शिक्षक भी इन विद्यार्थियों के लिए सरकार ने नियुक्त किए गए हैं। लेकिन उपयुक्त स्थान ना होने से ननिहालों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

यह विद्यालय वर्षो पुराना व जर्जर होने के बावजूद भी सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया । यहां के जनप्रतिनिधियों व सरकारी तंत्र की अनदेखी, इन छात्रों लिए एक बड़ी समस्या बनी है, ओर इसका खामियाजा यहां के ननिहालों को खुले मैदान में शिक्षा ग्रहण कर भुगतना पड़ रहा है।

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